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|रचनाकार=देवेन्द्र आर्य
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जीवन क्या है, कांच का घर है।
 
मौत के हाथों में पत्थर है।
 
पर्वत तो हो सकते हैं हम
 
सागर होना नदियों पर है।
 
मौसम, मजहब, चाहत, मण्डी
 
घर पर किसका खास असर है।
 
जब सपने नाखूनों में हों
 
आँखें होना बुरी खबर है।
 
विष पी कर हम अमर हो गए
 
मन का जादू बड़ा जबर है।
 
गांव में बदली इस दुनिया की
 
जड़ में कोई महानगर है।
 
आँसू तुम कहते हो जिसको
 
दुनिया का पहला अक्षर है।
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