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08:20, 26 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
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<poem>
ग़नीमत से गुजारा कर रहा हूँ
मगर चर्चा है जलसा कर रहा हूँ
ख़ुदाई तुझसे तौबा कर रहा हूँ
बदन का रंग नीला कर रहा हूँ
ठहरना तक नहीं सीखा अभी तक
अजल से वक़्त जाया कर रहा हूँ
तसल्ली आज भी है फ़ासलों पर
सराबों का ही पीछा कर रहा हूँ
मेरा साया मेरे बस में नहीं है
मगर दुनिया पे दावा कर रहा हूँ
</poem>
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