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08:51, 26 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
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<poem>तुम अपना चेहरा जो इन हाथों को थमा देते
तो इस पे बोसों की हम झालरें लगा देते
पलट के देखने भर से तो जी नहीं भरता
ये और करते कि थोड़ा सा मुस्कुरा देते
ये चाँद क्या है सितारे हैं क्या, जो कहते तुम
तुम्हारे क़दमों में हम कहकशां बिछा देते
तुम्हारे साथ उतर जाते हम भी बचपन में
तुम इस बदन को ज़रा सा जो गुदगुदा देते
तुम्हारे साथ रहे, ग़म मिला, ख़ुशी बाँटी
बस अपने साथ ही रहते तो सब को क्या देते
कहा तो होता कि तुम धूप से परेशां हो
हम अपने आप को दुपहर में ही डुबा देते
यहाँ उजालों ने आने से कर दिया था मना
वरना किसलिये शोलों को हम हवा देते
हमारा सूर्य न होना हमारे हक़ में रहा
न जाने कितने परिंदों के पर जला देते
</poem>