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08:58, 26 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
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<poem>किसी और में वो लचक न थी किसी और में वो झमक न थी
जो ठसक थी उस की अदाओं में किसी और में वो ठसक न थी
न तो कम पड़ा था मेरा हुनर न तेरा जमाल भी कम पड़ा
तेरा हुस्न जिस से सँवारता मेरे हाथ में वो धनक न थी
फ़क़त इस लिये ही ऐ दोसतो मैं समझ न पाया जूनून को
मेरे दिल में चाह तो थी मगर मेरी वहशतों में कसक न थी
ये चमन ही अपना वुजूद है इसे छोड़ने की भी सोच मत
नहीं तो बताएँगे कल को क्या यहाँ गुल न थे कि महक न थी
मेरी और तेरी उड़ान में भला कैसे होता मुक़ाबला
मेरे साथ मेरे उसूल थे तेरे साथ कोई झिझक न थी
</poem>
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