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{{KKRachna
|रचनाकार=साहिर लुधियानवी
|संग्रह=
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इतनी हसीन, इतनी जवाँ रात, क्या करें ?
 
जागे हैं कुछ अजीब से जज़्बात, क्या करें ?
 
 
पेड़ों के बाजुओं में महकती है चांदनी
 
बेचैन हो रहे हैं ख़यालात क्या करें ?
 
 
साँसों में घुल रही है किसी साँस की महक
 
दामन को छू रहा है कोई हाथ क्या करें ?
 
 
शायद तुम्हारे आने से यह भेद खुल सके
 
हैराँ हैं कि आज नई बात क्या करें ?
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