607 bytes added,
10:00, 26 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>दिल रो उठे फिर से,
न छेड़ो ऐसा साज कोई!
किसी तमन्ना पे तुझको,
हो न जाय ऐतराज कोई !
आज भी मोहब्बत को
यूँ ही रहने दो पाकीज़ा !
बेहतर है ख़ामोशी लबों की,
बयाँ न हो जाय राज कोई !
</poem>