762 bytes added,
10:23, 26 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>उम्र भर का गम उठाने की बात करते थे वो कभी ,
दौर-ए-गम शुरू हुआ नही , दामन छुड़ा के चल दिए !
अक्सर मेरे काँधे पे होता था उनका सर और,
जब जरूरत हुयी उनकी , बातें बना के चल दिए !
कभी मेरा तो कभी गैरों का शिकवा करते वो ,
मेरे हाल की कौन सुने , अपने सुना के चल दिए !
</poem>