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10:31, 26 फ़रवरी 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना
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<poem>मेरे हालात को न ग़ज़ल समझे
न गीत समझे,
वख्त का था क्या तकाज़ा...
न कोई जज़्बात समझे,
न रीत समझे...
ये गुज़रे कल के ज़ख्म हैं...
जिन्हें न हमदम समझे,
न मीत समझे...
दिल कि बाज़ी में हार गये...
फिर भी न हार हम समझे,
न जीत समझे...
बाद मुद्दत के आये अश्क...
इन्हें न फाजिल समझे,
न प्रीत समझे...
मेरे हालात को न ग़ज़ल समझे
न गीत समझे...!
</poem>