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[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>
टूटी है मेरी नींद, मगर तुमको इससे क्या
 
बजते रहें हवाओं से दर, तुमको इससे क्या
 
तुम मौज-मौज मिस्ल-ए-सबा घूमते रहो
 
कट जाएँ मेरी सोच के पर तुमको इससे क्या
 
औरों का हाथ थामो, उन्हें रास्ता दिखाओ
 
मैं भूल जाऊँ अपना ही घर, तुमको इससे क्या
 
अब्र-ए-गुरेज़-पा को बरसने से क्या ग़रज़
 
सीपी में बन न पाए गुहर, तुमको इससे क्या
 
ले जाएँ मुझको माल-ए-ग़नीमत के साथ उदू
 
तुमने तो डाल दी है सिपर, तुमको इससे क्या
 
तुमने तो थक के दश्त में ख़ेमे लगा लिए
 
तन्हा कटे किसी का सफ़र, तुमको इससे क्या ।
 </poem>
अब्र-ए-ग़ुरेज़-पा=भागते हुए बादल; उदू=दुश्मन; सिपर=ढाल; दश्त=जंगल
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