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यह संभव नहीं / गोपालदास "नीरज"
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05:52, 6 मार्च 2014
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पंथ की कठिनाइयों से मान लूँ मैं हार-यह संभव नहीं है।
आज चलने के लिए जब धूल तक ललकारती है-
पंथ की कठिनाइयों से मान लूँ मैं हार- यह संभव नहीं है।
</poem>
Sharda suman
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