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09:45, 14 मार्च 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=त्रिलोचन
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<poem>
दुखों की छाया में यह भव बसा है, नियति की
सदिच्छा होगी तो कुछ दिन कटेंगे, समय के
सधे आयामों में। भ्रम भ्रम रहेगा कि सच का
कभी पल्ला लेगा; श्वसन ठहरेगा विजन में।
</poem>