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वोट / हरिऔध

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|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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|संग्रह=चुभते चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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<poem>
वोट देते हैं टके की ओट में।

हैं सभाओं में बहुत ही ऐंठते।

वु+छ उठल्लू लोग ऐसे हैं कि जो।

हैं उठाते हाथ उठते बैठते।

वोट देने से उन्हें मतलब रहा।

एतबारों को न क्यों लेवें उठा।

वे उठाते हाथ योंही हैं सदा।

क्यों न उन पर हाथ हम देवें उठा।

वोट देने का निकम्मा ढंग हो।

है उन्हें बेआबरू करता न कम।

हैं उठाते तो उठायें हाथ वे।

क्यों उठा देवें पकड़ कर हाथ हम।

वोट की क्या चोट लगती है नहीं।

क्यों कमीने बन कमाते हैं टका।

नीचपन से जब लदा था बेतरह।

तब उठाये हाथ वै+से उठ सका।

वोट दें पर खोट से बचते रहें।

क्यों करें वह, लिम लगे जिस के किये।

जब कि ऊपर मुँह न उठ सकता रहा।

हाथ ऊपर हैं उठाते किस लिए।
</poem>
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