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अछूते फूल / हरिऔध

30 bytes removed, 09:40, 18 मार्च 2014
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फूल में कीट, चाँद में धाब्बे।धब्बे।
आग में धूम, दीप में काजल।
 
मैल जल में, मलीनता मन में।
 
देख किस का गया नहीं दिल मल।
है बुरा, घास-फूस-वाला घर।
 
मल भरा तन, गरल भरा प्याला।
 
रिस भरी आँख, सर भरा सौदा।
 
मन भरा मैल, दिल कसर वाला।
है कहाँ गोद तो भरी पूरी।
 
जो सकी गोद में न लाल सुला।
 
क्या मिला पूत जो सपूत नहीं।
 
क्या खुली कोख जो न भाग खुला।
क्या रहा ताल तब भरा जल से।
 
जब कि उस में रहा कमल न खिला।
 
क्या फली डाल जो सुफल न फली।
 
क्या खुली कोख जो न लाल मिला।
पुल सकेगा न बँधा सितारों पर।
 वु+ल कुल धारा धूल ढुल नहीं सकती। धुल सकेंगे न चाँद के धाब्बे।धब्बे।
बाँझ की कोख खुल नहीं सकती।
जब नहीं उस ने बुझाई भूख तो।
 
मोतियों से क्या भरी थाली रही।
 जो न उस के फल किसी को मिलसके।मिल सके।
तो फलों से क्या लदी डाली रही।
जोत वै+से वैसे मलीन होवेगी। क्या हुआ भूमि पर अगर पै+ली।फ़ैली।
धूल से भर कभी न धूप सकी।
 
हो सकी चाँदनी नहीं मैली।
आम में आ सका न कड़वापन।
 
है मिठाई न नीम में आती।
 
छोड़ ऊँचा सका न ऊँचापन।
 
नीच की नीचता नहीं जाती।
</poem>
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