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आँख / हरिऔध

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<poem>
सूर को क्या अगर उगे सूरज। 
क्या उसे जाय चाँदनी जो खिल।
 हम ऍंधोरा अँधेरा तिलोक में पाते। 
आँख होते अगर न तेरे तिल।
क्या हुआ चौकड़ी अगर भूले।
 लख उछल वू+द कूद और छल करना। 
है छकाता छलाँग वालों को।
 
आँख तेरा छलाँग का भरना।
काम करती रही करोड़ों में।
 
जब फबी आनबान साथ फबी।
 
और की कोर ही रही दबती।
 
आँख तेरी कभी न कोर दबी।
काजलों या कालिखों की छूत में।
 
कम अछूतापन नहीं तेरा सना।
 
धूल लेकर के अछूते पाँव की।
 
ऐ अछूती आँख तू सुरमा बना।
वह लुभाता है भला किस को नहीं।
 
थी भलाई भी उसी में भर सकी।
 
भूल भोलापन गई अपना अगर।
 
भूल भोली आँख ने तो कम न की।
क्या करेगी दिखा नुकीलापन।
 
क्या हुआ जो रही रसों बोरी।
 
सब भली करनियों करीनों से।
 
आँख की कोर जो रही कोरी।
क्या कहें और व+े के सभी दुखड़े। 
खेल होते हैं और के लेखे।
 
फूट जो है उसे बहुत भाती।
 
आँख तो आप फूट कर देखे।
देख सीधोसीधे, सामने हो, फिर न जा। 
मान जा, बेढंग चालें तू न चल।
 
सोच ले सब दिन किसी की कब चली।
 
एक तिल पर आँख मत इतना मचल।
हम कहें वै+से कैसे कि उन में सूझ है। 
जब न पर-दुख-आँसुओं में वे बहे।
 क्या उँजाले उजाले से भरे हो कर किया। आँख के तिल जब ऍंधोरे अँधेरे में रहे।
हो गईं सब बरौनियाँ उजली।
 
जोत का तार बेतरह टूटा।
 
देख ऊबी न तू छटा बाँकी।
 
आँख तेरा न बाँकपन छूटा।
रस निचुड़ता रहा सदा जिससे।
 
आज उससे सका न आँसू छन।
 
आँख अब मत बने रसीली तू।
 
देख तेरा लिया रसीलापन।
जब कि निज मुख बना लिया काला।
 
तब किसी मुँह की क्यों सहे लाली।
 
क्या अजब है अगर मरे जल जल।
 
कलमुँही आँख काजलों वाली।
मत रहे मस्त रंग में अपने।
 
मत किसी की बुरी बना दे गत।
 
जो पिला तू सके न रस-प्याला।
 
बावली आँख तो उगल बिख मत।
नहिं बड़ाई जो बड़ों की रख सकी।
 
कब रही उसकी उतरती आरती।
 
आँख जब तू चाँद से भिड़ती रही।
 
क्यों न तुझ को चाँदनी तब मारती।
एक दिन था कि हौसलों में डूब।
 
गूँधाती प्यार-मोतियों का हार।
 
अब लगातार रो रही है आँख।
 
टूटता है न आँसुओं का तार।
बेबसी में पड़ बहुत दुख सह चुकी।
 
कर चुकी सुख को जला कर राख तू।
 
अब उतार रही सही पत को न दे।
 
आँसुओं में डूब उतरा आँख तू।
मत मटक झूठमूठ रूठ न तू।
 
मत नमक घाव पर छिड़क हो नम।
 अब गया ऊब ऊधामों ऊधमों से जी। ऊधामी ऊधमी आँख मत मचा ऊधाम।ऊधम।
जो चुका है वार सरबस प्यार पर।
 
तू उसे तेवर बदलकर कर न सर।
 
दे दिया जिस ने कि चित अपना तुझे।
 
आँख चितवन से उसे तू चित न कर।
प्यार करने में कसर की जाय क्यों।
 
है न अच्छा जो रहे जी में कसर।
 
कर सके जो लाड़ तो कर लाड़ तू।
 
ऐ लड़ाकी आँख लड़ लड़ कर न मर।
कौन पानी है गँवाना चाहता।
 
मछलियाँ पानी बिना जीतीं नहीं।
 
प्यास पानी के बचाने की बढ़े।
 
आँसू आँसू क्यों भला पीती नहीं।
तू उसे भूल कर गुनी मते गुन।
 
जिस किसी को गुमान हो गुन का।
 जो कि हैं ताकते नहीं सीधो।सीधे।
आँख! मुँह ताक मत कभी उन का।
</poem>
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