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बेबसी / हरिऔध

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बेबसी, हो सदा बुरा तेरा। 
यह कहाँ ताब जो करें चूँ तक।
 
हम भला कान क्या हिलायें।
 
कान पर रेंगती नहीं जूँ तक।
देसहित का काम करने के समय।
 हम न योंही यों ही डालते कंधो कंधे रहे। 
झंझटों में डाल डावाँडोल कर।
 पेट के धांधो धंधे किये अंधो अंधे रहे।
लाभ गहरा किस तरह तो हो सके।
 
हाथ लग पाया अगर गहरा नहीं।
 हम भला वै+से कैसे ठहर पाते वहाँ। 
पाँव ठहराये जहाँ ठहरा नहीं।
छूट तो पीछा सका दुख से कहाँ।
 
तो मुसीबत है कहाँ पीछे हटी।
 
हाथ की जो हथकड़ी टूटी नहीं।
 
जो न बेड़ी पाँव की काटे कटी।
गड़ गये, सौ सौ मनों के बन गये।
 
अड़ गये, हैं राह पर आये कहाँ।
 पैठने को जातिहित जाति हित के पैंठ में। ये हमारे पाँव उठ पाये कहाँ।
और दूभर हुआ हमें जीना।
 
मन, थके मार, मर नहीं पाता।
 
हैं उतरते अकड़ अखाड़े में।
 
पैंतरा पाँव भर नहीं पाता।
जातिहित जाति हित पथ न देख तै होते। 
रुचि बहुत बार बार घबराई।
 
राह भारी हुए भर आया जी।
 
भर गये पाँव, आँख भर आई।
तंग है कर रही जगह तंगी।
 
हैं बखेड़े तमाम तो 'तै' से।
 
वे समेटे सिमिट नहीं पाते।
पाँव लेवें समेट हम कैसे।
पाँव लेवें समेट हम वै+से। पै+लते फ़ैलते देख पाँव औरों के। 
वे भला क्यों नहीं अकड़ जाते।
 
चाहता हूँ सिकोड़ लेना मैं।
 पाँव मेरे सिवु+ड़ सिकुड़ नहीं पाते।
बेबसी बाँट में पड़ी जब है।
 
जायगी नुच न किस लिए बोटी।
 
चोट पर चोट तब न क्यों होगी।
 
जब दबी पाँव के तले चोटी।
हर तरह कर बुराइयाँ अपनी।
 
वे कलें और के भले की हैं।
 जातियाँ बेतरह दबी वु+चली।कुचली।
चींटियाँ पाँव के तले की हैं।
थक गये बल कर, निकल पाये नहीं।
 जा रहे हैं और वे नीचे धाँसे।धँसे।
दिल दलक कर बेतरह दलके न क्यों।
 
हैं हमारे पाँव दलदल में फँसे।
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