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जियो बहादुर खद्दर धारी,लुटा देश को बारी बारी ,देश मा महगाई बेकारीनफरत कि फैली बीमारीदुखी है जनता बेचारीबिका जात है लोटा-थारीजियो जियौ बहादुर खद्दर धारी!
मनमानी हरताल करत होई मँहगाई ई बेकारी, नफ़रत कै फ़ैली बीमारीदेशवा का कंगाल करत होदुखी रहै जनता बेचारी, बिकी जात बा लोटा-थारी।खुद को माला माल करत होतोहरे दम पर चोर बाज़ारीजियो जियौ बहादुर खद्दर धारी!
धूमिल भई गाँधी कि खादीमनमानी हड़ताल करत हौ, देसवा का कंगाल करत हौपहिने लगे जब अवसरवादीखुद का मालामाल करत हौ, तोहरेन दम से चोर बज़ारी।या तो पहिने बड़े फसादीदेश को लूटो बारी बारीजियो जियौ बहादुर खद्दर धारी!
तन से गोराधूमिल भै गाँधी कै खादी,मन से गन्दापहिरै लागै अवसरवादीमंदिर-मस्जिद नाम पे चंदासबसे बढ़िया तोहरा धंधाया तो नमाज़ीपहिरैं बड़े प्रचारी, न तो पुजारीदेश का लूटौ बारी-बारी।जियो जियौ बहादुर खद्दर धारी!
सूखा या सैलाब जौ आवेतन कै गोरा, मन कै गन्दा, मस्जिद मंदिर नाम पै चंदासबसे बढ़ियाँ तोहरा बेटवा ख़ुसी मनावैघरवाली आँगन में गावैमंगल भवन अमंगल हारीधंधा, न तौ नमाज़ी,न तौ पुजारीजियो जियौ बहादुर खद्दर धारी!
झंडी झंडा रंग-बिरंगासूखा या सैलाब जौ आवै, तोहरा बेटवा ख़ुसी मनावैनगर-नगर में कर्फ़यू दंगाघरवाली आँगन मा गावै, मंगल भवन अमंगल हारी।खुशहाली में पड़ा अड़ंगाहम भूखा तू खाओ सोहारीजियो जियौ बहादुर खद्दर धारी!
झंडै झंडा रंग-बिरंगा, नगर-नगर मा कर्फ़्यू दंगाखुसहाली मा पड़ा अड़ंगा, हम भूखा तू खाव सोहारीजियौ बहादुर खद्दर धारी! बरखा मा विद्यालय ढही गयढहिगा, वही के नीचे टीचर रही गयरहिगानहर के खुलतै दुई पुल बहि गयतोहरी इ ख़ूनी ठेकेदारीबहिगा, तोहरेन पूत कै ठेकेदारी।जियो जियौ बहादुर खद्दर धारी!
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