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07:31, 24 मार्च 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रमाशंकर यादव 'विद्रोही'
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<poem>
मैं साईमन न्याय के कटघरे में खड़ा हूँ
प्रकृति और मनुष्य मेरी गवाही दें
मैं वहाँ से बोल रहा हूँ जहाँ
मोहनजोदड़ो के तालाब की आख़िरी सीढ़ी है
जिस पर एक औरत की जली हुई लाश पड़ी है
और तालाब में इंसानों की हड्डियाँ बिखरी पड़ी हैं
इसी तरह से एक औरत की जली हुई लाश
बेबीलोनिया में भी मिल जाएगी
और इंसानों की बिखरी हुई हड्डियाँ मेसोपोटामिया में भी
मैं सोचता हूँ और बार बार सोचता हूँ
ताकि याद आ सके-
प्राचीन सभ्यताओं के मुहाने पर
एक औरत की जली हुई लाश मिलती है और
इंसानों की बिखरी हुई हड्डियाँ
इसका सिलसिला सीरिया के चट्टानों से लेकर
बंगाल के मैदानों तक चला जाता है
और जो कान्हा के जंगलों से लेकर
सवाना के वनों तक फैला हुआ है.
</poem>
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