576 bytes added,
11:34, 31 मार्च 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुमन केशरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
औरों के लिए तप करने को पैदा हुई
जीव को औरत कहते हैं
कहती थी मां
चूल्हे के सामने से घुटनों को पकड़
उठती कराहती मां
उसके हाथों की बनी रोटी
अक्सरहा कुछ नमकीन लगती थी।
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader