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जाहिल के बाने / भवानीप्रसाद मिश्र
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16:44, 31 मार्च 2014
|रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं असभ्य हूँ क्योंकि खुले नंगे पाँवों चलता हूँ
आप सोचते हैं कि सीखता यह भी ढँग हमारे
मैं उतारना नहीं चाहता जाहिल अपने बाने
धोती-कुरता बहुत ज़ोर से लिपटाए हूँ याने !</poem>
Sharda suman
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