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और का और मेरा दिन / केदारनाथ अग्रवाल
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05:44, 1 अप्रैल 2014
{{KKRachna
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
दिन है
किसी और का
मेरा है
भैंस की खाल का
मरा
दिन ।
दिन।
यही कहता है
वृद्ध रामदहिन
जब से
चल बसा
उनका
लाड़ला ।
लाड़ला।
Sharda suman
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