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{{KKRachna
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
}}{{KKCatKavita}}<poem>
दिन है
किसी और का
मेरा है
भैंस की खाल का
मरा दिन । दिन।
यही कहता है
वृद्ध रामदहिन
जब से
चल बसा
उनका लाड़ला ।लाड़ला।
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