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10:01, 2 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
|अनुवादक=
|संग्रह=चोखे चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हम नहीं हैं कमाल वाले कम।
लोग हममें कमाल पाते हैं।
कुछ चुराते नहीं किसी का भी।
पर सदा मुँह हमीं चुराते हैं।
वे अगर हैं चतुर कहे जाते।
ए बड़े बेसमझ कहायेंगे।
जब कि चितचोर चित चुराते हैं।
क्यों न मुँहचोर मुँह चुरायेंगे।
तब उसे सामना रुचे कैसे।
जब रही लाज की लगी डोरी।
है लटे चित्त की लपेट बुरी।
चूक की है चपेट मुँहचोरी।
</poem>