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प्राणाधिके! प्रियतमे! / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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08:34, 3 अप्रैल 2014
सदा समीप खड़ी तू मन भर मनकी सब बातें कहती॥
आलिंगन करती, सुख देती, गल-बैयाँ देकर मिलती।
चिपटी सदा हृदय से रहती, कभी न
राीभर
रत्तीभर
हिलती॥
कभी मधुर संगीत सुनाती, कभी हँसाती औ हँसती।
कभी नयन मटकाती, भौंह चलाकर मनमें आ धँसती॥
Sharda suman
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