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ॐ जय जगदीश हरे / आरती

No change in size, 19:19, 1 दिसम्बर 2007
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥<br><br>
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं गहूँ मैं किसकी ।<br>तुम बिन और न दूजा, आस करूं करूँ मैं जिसकी ॥<br><br>
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी ।<br>
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति ।<br>
किस विधि मिलूं मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति ॥<br><br>
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे ।<br>
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