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यकायक तुम्हारी खोज
मकड़ी के जालों में बुन बैठी थी
 
अपने होने के परिधान!
और खोह-
अचानक भरभरा उठी थी.
 
बस उस दिन मैं आया था
तुम हलधर हुए...
तब मैं तुम्हारे हल की नोंक में
 
रोप रहा था रक्त-बीज...
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