Changes

बहुरि नहिं / कबीर

1,177 bytes added, 09:05, 20 अप्रैल 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कबीर |संग्रह= }} {{KKBhajan}} <poem> बहुरि नहिं ...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कबीर
|संग्रह=
}}
{{KKBhajan}}
<poem>
बहुरि नहिं आवना या देस॥ टेक॥

जो जो ग बहुरि नहि आ पठवत नाहिं सॅंस॥ १॥
सुर नर मुनि अरु पीर औलिया देवी देव गनेस॥ २॥
धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस॥ ३॥
जोगी जङ्गम औ संन्यासी दीगंबर दरवेस॥ ४॥
चुंडित मुंडित पंडित लो सरग रसातल सेस॥ ५॥
ज्ञानी गुनी चतुर अरु कविता राजा रंक नरेस॥ ६॥
को राम को रहिम बखानै को कहै आदेस॥ ७॥
नाना भेष बनाय सबै मिलि ढूंढि फिरें चहुँदेस॥ ८॥
कहै कबीर अंत ना पैहो बिन सतगुरु उपदेश॥ ९॥
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits