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09:14, 20 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कबीर
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[[Category:भजन]]
<poem>
भजो रे भैया राम गोविंद हरी।
राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी॥
जप तप साधन नहिं कछु लागत खरचत नहिं गठरी॥
संतत संपत सुख के कारन जासे भूल परी॥
कहत कबीर राम नहीं जा मुख ता मुख धूल भरी॥
</poem>
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