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पैसा तो खुशामद में, मेरे यार बहुत है / 'अना' क़ासमी
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13:02, 20 अप्रैल 2014
मुश्किल है मगर फिर भी उलझना मिरे दिल का
है
ऐ
हुस्न तिरी जुल्फ़ तो ख़मदार बहुत है
अब दर्द उठा है तो ग़ज़ल भी है ज़रूरी
वीरेन्द्र खरे अकेला
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