694 bytes added,
04:35, 21 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अनूप सेठी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
धरती पर पैर जमाना दूब की नाईं
टपरी की छत पर चढ़कर फल देना मोटे ताजे
फिर कुम्हड़े की बेल बन मुरझा जाना
सहना मार रहना मुस्तैद
पर इतने भी बैल मत हो जाना
पुट्ठे पर हाथ फिरे जब बच्चे का
ठिठक सिहर पगुराना
मत बिसराना .
</poem>