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06:09, 22 अप्रैल 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=निरंजन श्रोत्रिय
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
एक दिन
दस लोगों के हादसे में मरने की ख़बर
हिला कर रख देती है
अगले दिन फिर से मरते हैं दस लोग
कांप जाते हैं हम ख़बर पढ़ कर
अगले दिन फिर से दस लोगों की मौत
बमुश्किल निकाल पाती है कोई हाय मुँह से
दस लोगों के मारे जाने की ख़बर
अब एक कॉलम है अख़बार का
पढ़ते हैं जिसे हम सहज भाव से
कई बार नहीं भी पढ़ते।
फिर एक दिन अचानक मारे जाते हैं सौ लोग
हादसे में
ख़बर पढ़ कर हम फिर दहल उठते हैं।
हमारा दहलना अब
मृतकों की संख्या के सीधे समानुपाती है।
</poem>