{{KKCatGhazal}}
<poem>
ये शबे-अख़्तरो-क़मर <ref>चाँद तारों भरी रात </ref> चुप है
एक हंगामा है मगर चुप है
पहले कितनी पुकारें आती थीं
चल पड़ा हूँ तो रहगुज़र <ref>रास्ता </ref> चुप है
बस ज़बाँ हाँ कहे ये ठीक नहीं
साथ तेरे ज़माना बोलता था
तू नहीं है तो हर बशर <ref>आदमी </ref> चुप है
बर्क़ <ref>बिजली </ref> ख़ामोश, ज़मज़मे <ref>सुरीला गायन </ref> ख़ामोश
शायरी का हरिक हुनर चुप है
बात कुछ तो है, तू अगर चुप है
</poem>
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