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कुछ चलेगा जनाब, कुछ भी नहीं / 'अना' क़ासमी
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14:49, 26 अप्रैल 2014
हम ग़रीबों के ख़्वाब कुछ भी नहीं
मन की दुनिया में सब ही उरियाँ
<ref>नंगे </ref>
हैं
दिल के आगे हिजाब कुछ भी नहीं
ज़िन्दगी भर का लेन देन ‘अना’
और
हिजाबो
हिसाबो
-किताब कुछ भी नहीं
</poem>
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वीरेन्द्र खरे अकेला
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