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उस क़ादरे-मुतलक़ से बग़ावत भी बहुत की / 'अना' क़ासमी
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14:56, 26 अप्रैल 2014
{{KKCatGhazal}}
<poem>
उस क़ादरे-मुतलक़
<ref>सर्व श्रेष्ठ ईश्वर</ref>
से बग़ावत भी बहुत कीइस ख़ाक के पुतले ने जसारत
<ref>दुष्साहस </ref>
भी बहुत की
इस दिल ने अदा कर दिया हक़ होने का अपने
तूने तो मिरे साथ रियायत भी बहुत की
</poem>
{{KKMeaning}}
वीरेन्द्र खरे अकेला
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