गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
पैसा तो खुशामद में, मेरे यार बहुत है / 'अना' क़ासमी
47 bytes added
,
08:45, 27 अप्रैल 2014
बेताज हुकूमत का मज़ा और है वरना
मसनद
<ref>सिंहासन </ref>
के लिए लोगों का इसरार बहुत है
मुश्किल है मगर फिर भी उलझना मिरे दिल का
साए के लिए एक ही दीवार बहुत है
</poem>
{{KKMeaning}}
वीरेन्द्र खरे अकेला
265
edits