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लदा-फँदा वसन्त / सुधा गुप्ता
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19:43, 1 मई 2014
अकेले रास्ते
अब खिली सेवती
निव्याज
निर्व्याज
हँसी !
रोम-रोम भीगा है !
आँसुओं का डेरा है ! !
वीरबाला
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