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निष्परिश्रम छोड़ जिनको
मोह लेता विशॿन विश्व भर को,
मानवों को, सुर-असुर को,
वृद्ध ब्रह्मा, विष्णु, हर को,
भंग कर देता तपस्या
सिदॿधसिद्ध, ऋषि, मुनि सत्तमों की
वे सुमन के बाण मैंने,
ही दिये थे पंचशर को;
कह रहा जग वासनामय
हो रहा उद्गार मेरा!
</poem>
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