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01:13, 11 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुनील गज्जाणी
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
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{{KKCatKavita}}
<Poem>बरसै है पाणी
कठै रिजर्व
कठै जनरल
कोटै ज्यूं
कठै मानखो गळो गीलो करण नै तरसै
कठै बाढ सूं मरै लोग
कठै फसलां पाणी नैं तरसै
कठै जळ-समाधि लेवै जमीं
ओ ई चलण है अबार
फगत फरक इत्तो कै
कुदरत कदै रिस्वत लेवै कोनी।</poem>