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ओ मेरे दिल!-3 / अज्ञेय
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07:46, 12 मई 2014
उस स्पन्दन ही से मान-भरे, ओ उर मेरे अरमान-भरे,
ओ मानस मेरे मतवाले-ओ पौरुष के अभिमान-भरे!
तुझ में
सामथ्र्य
सामर्थ्य
रहे जब तक तू ऐसे सदा तड़पता चल,
धक्-धक्, धक्-धक् ओ मेरे दिल!
</poem>
Sharda suman
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