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हिमन्ती बयार / अज्ञेय
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08:18, 12 मई 2014
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हवा हिमन्ती सन्नाती है चीड़ में, सहमे पंछी चिहुँक उठे हैं नीड़ में,
दर्द गीत में रुँधा रहा-बह निकला गल कर मींड में-
तुम हो मेरे अन्तर में पर मैं खोया हूँ भीड़ में!
Sharda suman
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