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|रचनाकार=संजय आचार्य वरुण
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
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<Poem>तूं एक आकास हो
मतलब आभो
घणो लांबो चवड़ो
अणूतो फैलाव लियोड़ो
जठीनै देखां
बठीनै तूं, फगत तूं
म्हैं थनैं देख देख’र
करतो अचूंभो
आज भी हुवै
घणो इचरज
कै इतरी बडी चीज नैं
बणावण वाळो
आप कितरो बडो हुसी
कुण जाणै....?</poem>
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