(दोहा)
कवित कह्यो दोहा कह्यो, तुलै न छप्प्य छंद ।छप्य्।।क छंद।बिरच्या बिरच्या् यहै विचार कै, यह बरवैरस कंद ।।1।।कंद।।1।।
(मंगलाचरण)
बंदौ देवि सरदवा, पद कर जोरि ।जोरि।बरनत काव्य काव्यस बरैवा, लगै न खोरि ।।2।।खोरि।।2।।
(उत्तमाउत्त्मा)
लखि अपराध पियरवा, नहिं रिस कीन ।कीन।बिहँसत चनन चउकिया, बैठक दीन ।।3।।दीन।।3।।
(मध्यमामध्यनमा)
बिनुगुन पिय-उर हरवा, उपट्यो हेरि ।हेरि।चुप ह्वै चित्र पुतरिया, रहि मुख फेरि ।।4।।फेरि।।4।।
(अधमा)
बेरिहि बेर गुमनवा, जनि करु नारि ।नारि।
मानिक औ गजमुकुता, जौ लगि बारि।।5।।
(स्वकीयास्व कीया)
रहत नयन के कोरवा, चितवनि छाय ।छाय।चलत न पग-पैजनियॉं, मग अहटाय ।।6।।अहटाय।।6।।
(मुग्धामुग्धाम)
लहरत लहर लहरिया, लहर बहार ।बहार।मोतिन जरी किनरिया, बिथुरे बार ।।7।।बार।।7।।
लागे आन नवेलियहि, मनसिज बान ।बान।उसकन लाग उरोजवा दृग तिरछान ।।8।।तिरछान।।8।।
(अज्ञातयौवना)
कवन रोग दुहुँ छतिया, उपजे आय ।आय।दुखि दुखि उठै करेजवा, लगि जनु जाय ।।9।।जाय।।9।।
(ज्ञातयौवना)
औचक आइ जोबनवाँ, मोहि दुख दीन ।दीन।छुटिगो संग गोइअवॉं नहि भल कीन ।।10।।कीन।।10।।
(नवोढ़ा)
पहिरति चूनि चुनरिया, भूषन भाव ।भाव।नैननि देत कजरवा, फूलनि चाव ।।11।।चाव।।11।।
(विश्रब्ध विश्रब्धर नवोढ़ा)
जंघन जोरत गोरिया, करत कठोर ।कठोर।छुअन न पावै पियवा, कहुँ कुच-कोर ।।12।।कोर।।12।।
(मध्यमामध्यतमा)
ढीलि आँख जल अँचवत, तरुनि सुभाय ।सुभाय।धरि खसिकाइ घइलना, मुरि मुसुकाय ।।13।।मुसुकाय।।13।।
(प्रौढ़ रतिप्रीता)
भोरहि बोलि कोइलिया, बढ़वति ताप ।ताप।घरी एक घरि अलवा, रह चुपचाप ।।14।।चुपचाप।।14।।
(परकीया)
सुनि सुनि कान मुरलिया, रागन भेद ।भेद।गैल न छाँड़त गोरिया, गनत न खेद ।।15।।खेद।।15।।
(ऊढ़ा)
निसु दिन सासु ननदिया, मुहि घर हेर ।हेर।सुनन न देत मुरलिया मधुरी टेर ।।161।टेर।।161।
(अनूढ़ा)
मोहि बर जोग कन्हैया कन्हैाया लागौं पाय ।पाय।तुहु कुल पूज देवतवा, होहु सहाय ।।17।।सहाय।।17।।
(भूत सुरति-संगोपना)
चूनत फूल गुलबवा डार कटील ।कटील।टुटिगा बंद अँगियवा, फटि पट नील ।।18।।नील।।18।।
आयेसि कवनेउ ओरवा, सुगना सार ।सार।परिगा दाग अधरवा, चोंच चोटार ।।19।।चोटार।।19।।
(वर्तमान सुरति-गोपना)
मं पठयेउ जिहि मकवॉं, आयेस साध ।साध।छुटिगा सीस को जुरवा, कसि के बाँध ।।20।।बाँध।।20।।
मुहि तुहि हरबर आवत, भा पथ खेद ।खेद।रहि रहि लेत उससवा, बहत प्रसेद ।।21।।प्रसेद।।21।।
(भविष्य भविष्यत सुरति-गोपनान)
होइ कत आइ बदरिया, बरखहि पाथ ।पाथ।जैहौं घन अमरैया, सुगना साथ ।।22।।साथ।।22।।
जैहौं चुनन कुसुमियॉं, खेत बडि दूर ।बडिे दूर।नौआ केर छोहरिया, मुहि सँग कूर ।।23।।कूर।।23।।
(क्रिया-विदग्धाविदग्धान)
बाहिर लैके दियवा, बारन जाय ।जाय।सासु ननद ढिग पहुँचत, देत बुझाय ।।24।।बुझाय।।24।।
(वचन-विदग्धाविदग्धाग)
तनिक सी नाक नथुनिया, मित हित नीक ।नीक।कहति कहिति नाक पहिरावहु, चित दै सींक ।।25।।सींक।।25।।
(लक्षिता)
आजु नैन के कजरा, औरे भाँत ।भाँत।नागर नहे नवेलिया, सुदिने जात ।।26।।जात।।26।।
(अन्यअन्य -सुरति-दु:खिता)
बालम अस मन मिलियउँ, जस पय पानि ।पानि।हँसिनि भइल सवतिया, लइ बिलगानि ।।27।।बिलगानि।।27।।
(संभोग-दु:खिता)
मैं पठयउ जिहि कमवाँ, आयसि साध ।साध।छुटिगो सीस को जुरवा, कसि के बाँधि ।।28।।बाँधि।।28।।
मुहि तुहि हरबत आवत, भव पथ खेद ।खेद।रहि रहि लेत उससवा, बहत प्रसेद ।।29।।प्रसेद।।29।।
(प्रेम-गर्विता)
आपुहि देत जवकवा, गूँदत हार ।हार।चुनि पहिराव चुनरिया, प्रानअधार ।।30।।प्रानअधार।।30।।
अवरन पाय जवकवा, नाइन दीन ।दीन।मुहि पग आगर गोरिया, आनन कीन ।।31।।कीन।।31।।
(रूप-गर्विता)
खीन मलिन बिखभैया, औगुन तीन ।तीन।मोहिं कहत विधुबदनी, पिय मतिहीन ।।32।।मतिहीन।।32।।
दातुल भयसि सुगरुवा, निरस पखान ।पखान।यह मधु भरल अधरवा, करसि गुमान ।।33।।गुमान।।33।।
(प्रथम अनुशयना, भावी-संकेतनष्टासंकेतनष्टार)
धीरज धरु किन गोरिया करि अनुराग ।अनुराग।जात जहाँ पिय देसवा, घन बन बाग ।। बाग।। 34।।
जनि मरु रोय दुलहिया, कर मन ऊन ।ऊन।सघन कुंज ससुररिया, औ घर सून ।।35।।सून।।35।।
(द्वितीय अनुशयना, संकेत-विघट्टना)
जमुना तीर तरुनिअहि लखि भो सूल ।सूल।झरिगो रूख बेइलिया, फुलत न फूल ।।36।।फूल।।36।।
ग्रीषम दवत दवरिया, कुंज कुटीर ।कुटीर।तिमि तिमि तकत तरुनिअहिं, बाढ़ी पीर ।।37।।पीर।।37।।
(तृतीय अनुशयना, रमणगमना)
मितवा करत बँसुरिया, सुमन सपात ।सपात।फिरि फिरि तकत तरुनिया, मन पछतात ।।38।।पछतात।।38।।
मित उत तें फिरि आयेउ, देखु न राम ।राम।मैं न गई अमरैया, लहेउ न काम ।।39।।काम।।39।।
(मुदिता)
नेवते गइल ननदिया, मैके सासु ।सासु।दुलहिनि तोरि खबरियाखबारिया,आवै आँसु ।।40।।आँसु।।40।।
जैहौं काल नेवतवा, भा दु:ख दून ।दून।गॉंव करेसि रखवरिया, सब घर सून ।।41।।सून।।41।।
(कुलटा)
जस मद मातल हथिया, हुमकत जात ।जात।चितवत जात तरुनिया, मन मुसकात ।।42।।मुसकात।।42।।
चितवत ऊँच अटरिया, दहिने बाम ।बाम।लाखन लखत विछियवा, लखी सकाम ।।43।।सकाम।।43।।
(सामान्या गणिका)
लखि लखि धनिक नयकवा बनवत भेष ।भेष।रहि गइ हेरि अरसिया कजरा रेख ।।44।।रेख।।44।।
(मुग्धा मुग्धाि प्रोषितपतिका)
कासो कहौ सँदेसवा, पिय परदेसु ।परदेसु।लागेहु चइत न फले तेहि बन टेसु ।।45।।टेसु।।45।।
(मध्या मध्यात प्रोषितपतिका)
का तुम जुगुल तिरियवा, झगरति आय ।आय।पिय बिन मनहुँ अटरिया, मुहि न सुहाय ।।46।।सुहाय।।46।।
(प्रौढ़ा प्रोषितपतिका)
तैं अब जासि बेइलिया, बरु जरि मूल ।मूल।बिनु पिय सूल करेजवा, लखि तुअ फूल ।।47।।फूल।।47।।
या झर में घर घर में, मदन हिलोर ।हिलोर।पिय नहिं अपने कर में, करमै खोर ।।48।।खोर।।48।।
(मुग्धा मुग्धाप खंडिता)
सखि सिख मान नवेलिया, कीन्हेसि मान ।कीन्हेोसि मान।पिय बिन कोपभवनवा, ठानेसि ठान ।।49।।ठान।।49।।
सीस नवायँ नवेलिया, निचवइ जोय ।जोय।छिति खबि, छोर छिगुरिया, सुसुकति रोय ।।50।।रोय।।50।।
गिरि गइ पीय पगरिया, आलस पाइ ।पाइ।पवढ़हु जाइ बरोठवा, सेज डसाइ ।।51।।डसाइ।।51।।
पोछहु अधर कजरवा, जावक भाल ।भाल।उपजेउ पीतम छतिया, बिनु गुन माल ।।52।।माल।।52।।
(प्रौढ़ा खंडिता)
पिय आवत अँगनैया, उठि कै लीन ।लीन।साथे चतुर तिरियवा, बैठक दीन ।।53।।दीन।।53।।
पवढ़हु पीय पलँगिया, मींजहुँ पाय ।पाय।रैनि जगे कर निंदिया, सब मिटि जाय ।।54।।जाय।।54।।
(परकीया खंडिता)
जेहि लगि सजन सनेहिया, छुटि घर बार ।बार।आपन हित परिवरवा, सोच परार ।।55।।परार।।55।।
(गणिका खंडिता)
मितवा ओठ कजरवा, जावक भाल ।भाल।लियेसि काढ़ि बइरिनिया, तकि मनिमाल ।।56।।मनिमाल।।56।।
(मुग्धा मुग्धाज कलहांतरिता)
आयेहु अबहिं गवनवा, जुरुते मान ।मान।अब रस लागिहि गोरिअहि, मन पछतान ।।57।।पछतान।।57।।
(मग्धा मग्धाि कलहांतरिता)
मैं मतिमंद तिरियवा, परिलिउँ भोर ।भोर।तेहि नहिं कंत मनउलेउँ, तेहि कछु खोर ।।58।।खोर।।58।।
(प्रौढ़ा कलहांतरिता)
थकि गा करि मनुहरिया, फिरि गा पीय ।पीय।मैं उठि तुरति न लायेउँ, हिमकर हीय ।।59।।हीय।।59।।
(परकीया कलहांतरिता)
जेहि लगि कीन बिरोधवा, ननद जिठानि ।जिठानि।रखिउँ न लाइ करेजवा, तेहि हित जानि ।।60।।जानि।।60।।
(गणिका कलहांतरिता)
जिहि दीन्हेउ दीन्हेलउ बहु बिरिया, मुहि मनिमाल ।मनिमाल।तिहि ते रूठेउँ सखिया, फिरि गे लाल ।।61।।लाल।।61।।
(मुग्धा विप्रलब्धामुग्धाठ विप्रलब्धाा)
लखे न कंत सहेटवा, फिरि दुबराय ।दुबराय।धनिया कमलबदनिया, गइ कुम्हिलाय ।।62।।कुम्हिलाय।।62।।
(मध्या विप्रलब्धामध्याब विप्रलब्धाइ)
देखि न केलि-भवनवा, नंदकुमार ।नंदकुमार।लै लै ऊँच उससवा, भइ बिकरार ।।63।।बिकरार।।63।।
(प्रौढ़ा विप्रलब्धाविप्रलब्धान)
देखि न कंत सहेटवा, भा दुख पूर ।पूर।भौ तन नैन कजरवा, होय गा झूर ।।64।।झूर।।64।।
(परकीया विप्रलब्धाविप्रलब्धा )
बैरिन भा अभिसरवा, अति दुख दानि ।दानि।प्रातउ मिलेउ न मितवा, भइ पछितानि ।।65।।पछितानि।।65।।
(गणिका विप्रलब्धागणिका विप्रलब्धात)
करिकै सोरह सिंगरवा, अतर लगाइ ।लगाइ।मिलेउ न लाल सहेटवा, फिरि पछिताई ।।66।।पछिताई।।66।।
(मुग्धा उत्कंठितामुग्धाल उत्कं,ठिता)
भा जुग जाम जमिनिया, पिय नहिं जाय ।जाय।राखेउ कवन सवतिया, रहि बिलमाय ।।67।।बिलमाय।।67।।
(मध्या उत्कंठितामध्या उत्कं,ठिता)
जोहत तीय अँगनवा, पिय की बाट ।बाट।बेचेउ चतुर तिरियवा, केहि के हाट ।।68।।हाट।।68।।
(प्रौढ़ा उत्कंठिताउत्कंाठिता)
पिय पथ हेरत गोरिया, भा भिनसार ।भिनसार।चलहु न करिहि तिरियवा, तुअ इतबार ।।69।।इतबार।।69।।
(परकीया उत्कंठिताउत्कंिठिता)
उठि उठि जात खिरिकिया, जोहत बाट ।बाट।कतहुँ न आवत मितवा, सुनि सुनि खाट ।।70।।खाट।।70।।
(गणिका उत्कंठिताउत्कंवठिता)
कठिन नींद भिनुसरवा, आलस पाइ ।पाइ।धन दै मूरख मितवा, रहल लोभाइ ।।71।।लोभाइ।।71।।
(मुग्धा वासकसज्जामुग्धा वासकसज्जार)
हरुए गवन नबेलिया, दीठि बचाइ ।बचाइ।पौढ़ी जाइ पलँगिया, सेज बिछाइ ।।72।।बिछाइ।।72।।
(मध्या वासकसज्जामध्या वासकसज्जास)
सुभग बिछाई पलँगिया, अंग सिंगार ।सिंगार।चितवत चौंकि तरुनिया, दै दृ्ग द्वार ।।73।।द्वार।।73।।
(प्रौढ़ा वासकसज्जावासकसज्जास)
हँसि हँसि हेरि अरसिया, सहज सिंगार ।सिंगार।उतरत चढ़त नवेलिया, तिय कै बार ।।74।।बार।।74।।
(परकीया वासकसज्जावासकसज्जा,)
सोवत सब गुरू लोगवा, जानेउ बाल ।बाल।दीन्हेसि दीन्हेबसि खोलि खिरकिया, उठि कै हाल ।।75।।हाल।।75।।
(सामान्या वासकसज्जासामान्याह वासकसज्जा,)
कीन्हेसि कीन्हेमसि सबै सिंगरवा, चातुर बाल ।बाल।ऐहै प्रानपिअरवा, लै मनिमाल ।।76।।मनिमाल।।76।।
(मुग्धा स्वाधीनपतिकामुग्धाय स्वांधीनपतिका)
आपुहि देत जवकवा, गहि गहि पाय ।पाय।आपु देत मोहि पियवा, पान खवाय ।।77।।खवाय।।77।।
(मध्या स्वाधीनपतिकामध्याो स्वांधीनपतिका)
प्रीतम करत पियरवा, कहल न जात ।जात।रहत गढ़ावत सोनवा, इहै सिरात ।।78।।सिरात।।78।।
(प्रौढ़ा स्वाधीनपतिकास्वााधीनपतिका)
मैं अरु मोर पियरवा, जस जल मीन ।मीन।बिछुरत तजत परनवा, रहत अधीन ।।79।।अधीन।।79।।
(परकीया स्वाधीनपतिकास्वााधीनपतिका)
भो जुग नैन चकोरवा, पिय मुख चंद ।चंद।जानत है तिय अपुनै, मोहि सुखकंद ।।80।।सुखकंद।।80।।
(सामान्या स्वाधीनपतिकासामान्याअ स्वािधीनपतिका)
लै हीरन के हरवा, मानिकमाल ।मानिकमाल।मोहि रहत पहिरावत, बस ह्वै लाल ।।81।।लाल।।81।।
(मुग्धा मुग्धाह अभिसारिका)
चलीं लिवाइ नवेलिअहि, सखि सब संग ।संग।जस हुलसत गा गोदवा, मत्त मतंग ।।82।।मत्तस मतंग।।82।।
(मध्या मध्याग अभिसारिका)
पहिरे लाल अछुअवा, तिय-गज पाय ।पाय।चढ़े नेह-हथिअवहा, हुलसत जाय ।।83।।जाय।।83।।
(प्रौढ़ा अभिसारिका)
चली रैनि अँधिअरिया, साहस गाढि ।गाढि।पायन केर कँगनिया, डारेसि काढि ।।84।।काढि।।84।।
(परकीया क(ष्णाभिसारिकाष्णा,भिसारिका)
नील मनिन के हरवा, नील सिंगार ।सिंगार।किए रैनि अँधिअरिया, धनि अभिसार ।।85।।अभिसार।।85।।
(शुक्लाभिसारिकाशुक्लाँभिसारिका)
सेत कुसुम कै हरवा भूषन सेत ।सेत।चली रैनि उँजिअरिया, पिय के हेत ।।86।।हेत।।86।।
(दिवाभिसारिका)
पहिरि बसन जरतरिया, पिय के होत ।होत।चली जेठ दुपहरिया, मिलि रवि जोत ।।87।।जोत।।87।।
(गणिका अभिसारिका)
धन हित कीन्ह कीन्हि सिंगरवा, चातुर बाल ।बाल।चली संग लै चेरिया, जहवाँ लाल ।।88।।लाल।।88।।
(मुग्धा प्रवत्स्यत्पतिकामुग्धा प्रवत्य्व त्पतिका)
परिगा कानन सखिया पिय कै गौन ।गौन।बैठी कनक पलँगिया, ह्वै कै मौन ।।89।।मौन।।89।।
(मध्या प्रवत्स्यत्पतिकामध्याप प्रवत्य्व त्पतिका)
सुठि सुकुमार तरुयिका, सुनि पिय-गौन ।गौन।लाजनि पौढि ओबरिया, ह्वै कै मौन ।।90।।मौन।।90।।
(प्रौढ़ा प्रवत्स्यत्पतिकाप्रवत्य्बरित्पतिका)
बन धन फूलहि टेसुआ, बगिअनि बेलि ।बेलि।चलेउ बिदेस पियरवा फगुआ खेलि ।।91।।खेलि।।91।।
(परकीया प्रवत्स्यत्पतिकाप्रवत्य्ग त्पतिका)
मितवा चलेउ बिदेसवा मन अनुरागि ।अनुरागि।पिय की सुरत गगरिया, रहि मग लागि ।।92।।लागि।।92।।
(गणिका प्रवत्स्यत्पतिकाप्रवत्य् म त्पतिका)
पीतम इक सुमिरिनिया, मुहि देइ जाहु ।जाहु।जेहि जप तोर बिरहवा, करब निबाहु ।।93।।निबाहु।।93।।
(गुग्धा गुग्धार आगतपतिका)
बहुत दिवस पर पियवा, आयेउ आज ।आज।पुलकित नवल दुलहिवा, कर गृह-काज ।।94।।काज।।94।।
(मध्या मध्याल आगतपतिका)
पियवा आय दुअरवा, उठि किन देख ।देख।दुरलभ पाय बिदेसिया,मुद अवरेख ।।95।।अवरेख।।95।।
(प्रौढ़ा आगतपतिका)
आवत सुनत तिरियवा, उठि हरषाइ ।हरषाइ।तलफत मनहुँ मछरिया, जनु जल पाइ ।।96।।पाइ।।96।।
(परकीया आगतपतिका)
पूछन चली खबरिया, मितवा तीर ।तीर।हरखित अतिहि तिरियवा पहिरत चीर ।।97।।चीर।।97।।
(गणिका आगतपतिका)
तौ लगि मिटिहि न मितवा, तन की पीर ।पीर।जौ लगि पहिर न हरवा, जटित सुहीर ।।98।।सुहीर।।98।।
(नायक)
सुंदर चतुर धनिकवा, जाति के ऊँच ।ऊँच।केलि-कला परबिनवा, सील समूच ।।99।।समूच।।99।।
(नायक भेद)
पति, उपपति, वैसिकवा, त्रिबिध बखान ।बखान।
(पति लक्षण)
बिधि सो ब्याह्यो ब्याणह्यो गुरु जन पति सो जानि ।।100।।जानि।।100।।
(पति)
लैकै सुघर खुरुपिया, पिय के साथ ।साथ।छइवै एक छतरिया, बरखत पाथ ।।101।।पाथ।।101।।
(अनुकूल)
करत न हिय अपरधवा, सपनेहुँ पीय ।पीय।मान करन की बेरिया, रहि गइ हीय ।।102।।हीय।।102।।
(दक्षिणदक्षिण)
सौतिन करहि निहोरवा, हम कहँ देहु ।देहु।चुन चु चंपक चुरिया, उच से लेहु ।।103।।लेहु।।103।।
(शठ)
छूटेउ लाज डगरिया, औ कुल कानि ।कानि।करत जात अपरधवा, परि गइ बानि ।।104।।बानि।।104।।
(धृष्टधृष्टप)
जहवाँ जात रइनियाँ तहवाँ जाहु ।जाहु।जोरि नयन निरलजवा, कत मुसुकाहु ।।105।।मुसुकाहु।।105।।
(उपपति)
झाँकि झरोखन गोरिया, अँखियन जोर ।जोर।फिरि चितवन चित मितवा, करत निहोर ।।106।।निहोर।।106।।
(वचन-चतुर)
सघन कुंज अमरैया, सीतल छाँह ।छाँह।झगरत आय कोइलिया, पुनि उड़ि जाह ।।107।।जाह।।107।।
(क्रिया-चतुर)
खेलत जानेसि टोलवा, नंदकिसोर ।नंदकिसोर।हुइ वृषभानु कुँअरिया, होगा चोर ।।108।।चोर।।108।।
(वैशिक)
जनु अति नील अलकिया बनसी लाय ।लाय।भो मन बारबधुअवा, तीय बझाय ।।109।।बझाय।।109।।
(प्रोषित नायक)
करबौं ऊँच अटरिया, तिय सँग केलि ।केलि।कबधौं, पहिरि गजरवा, हार चमेलि ।।110।।चमेलि।।110।।
(मानी)
अब भरि जनम सहेलिया, तकब न ओहि ।ओहि।ऐंठलि गइ अभिमनिया, तजि कै मोहि ।।111।।मोहि।।111।।
(स्वप्नदर्शनस्वप्न,दर्शन)
पीतम मिलेउ सपनवाँ भइ सुख-खानि।
आनि जगाएसि चेरिया, भइ दुखदानि ।।112।।दुखदानि।।112।।
(चित्र दर्शन)
पिय मूरति चितसरिया, चितवन बाल ।बाल।सुमिरत अवधि बसरवा, जपि जपि माल ।।113।।माल।।113।।
(श्रवण)
आयेउ मीत बिदेसिया, सुन सखि तोर ।तोर।उठि किन करसि सिंगरवा, सुनि सिख मोर ।।114।।मोर।।114।।
(साक्षात दर्शन)
बिरहिनि अवर बिदेसिया, भै इक ठोर ।ठोर।पिय-मुख तकत तिरियवा, चंद चकोर ।।115।।चकोर।।115।।
(मंडन)
सखियन कीन्ह कीन्ह सिंगरवा रचि बहु भाँति ।भाँति।हेरति नैन अरसिया, मुरि मुसुकाति ।।116।।मुसुकाति।।116।।
(शिक्षा)
छाकहु बैठ दुअरिया मीजहु पाय ।पाय।पिय तन पेखि गरमिया, बिजन डोलाय ।।117।।डोलाय।।117।।
(उपालंभ)
चुप होइ रहेउ सँदेसवा, सुनि मुसुकाय ।मुसुकाय।पिय निज कर बिछवनवा, दीन्ह उठाय ।।118।।दीन्हम उठाय।।118।।
(परिहास)
बिहँसति भौहँ चढ़ाये, धुनष मनीय ।मनीय।लावत उर अबलनिया, उठि उठि पीय ।।119।। १.भोरहिं बोलि कोइलिया बढ़वति ताप .धरी एक भरि अलिया! रहु चुपचाप .बाहर लैके दियवा बारन जाई .सासु ननद पर पहुँचत देति बुझाइ .पिय आवत अँगनैया उठिकै लीन .बिहँसत चतुर तिरियवा बैठक दीन .लै कै सुघर खुरपिया पिय के साथ .छईबे एक छतरिया बरसत पाथ .पीतं एक सुमरिनियाँ मोहिं देई जाहु.जेहि जपि तोर बिरहवा करब निबाहु.पीय।।119।।<poeM/poem>