1,059 bytes added,
13:42, 17 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हुसैनी वोहरा
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>जग मांय पसर्योड़ो
अंधारो
जी रैयो
अंधारै री दुनिया मांय
बणग्यो जीवण रो दूजो नांव अंधारो
उजाळा सूं लागै डर
भागै है, लुकै है
करै है अंधारै री आरती
उजाळै री बात सूं
नीं कोई लगाव
अंधारो व्हालो होयग्यो है
उजाळो होयग्यो परायो।
आवो! नूंतां उजाळै नैं
करां मांय-बारै उजास
दुनिया नैं दिखावां
उजाळै रो मारग
आवो! करां
नेन्ही बाती रो दिवलो।</poem>