734 bytes added,
09:31, 20 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सूरदास
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatPad}}
{{KKAnthologyKrushn}}
<poem>
चिरजीयो होरी को रसिया चिरजीयो।
ज्यों लो सूरज चन्द्र उगे है, तो लों ब्रज में तुम बसिया चिरजीयो ॥१॥
नित नित आओ होरी खेलन को, नित नित गारी नित हँसिया चिरजीयो॥२॥
सूरदास प्रभु तिहारे मिलन को, पीत पिछोरी कटि कसिया चिरजीयो ॥३॥
</poem>