710 bytes added,
10:27, 20 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सूरदास
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatPad}}
{{KKAnthologyKrushn}}
<poem>
फल फलित होय फलरूप जाने ।
देखिहु ना सुनी ताहि की आपुनी, काहु की बात कहो कैसे जु माने ॥१॥
ताहि के हाथ निर्मोल नग दीजिये, जोई नीके करि परखि जाने ।
सूर कहें क्रूर तें दूर बसिये सदा, श्री यमुना जी को नाम लीजे जु छाने ॥२॥
</poem>