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09:01, 21 मई 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सूरदास
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हरि जनकू हरिनाम बडो धन हरि जनकू हरिनाम ॥ ध्रु०॥
बिन रखवाले चोर नहि चोरत सुवत है सुख धाम ॥ ब०॥१॥
दिन दीन होते सवाई दोढी धरत नहीं कछु दाम ॥ ब०॥२॥
सुरदास दोढी धरत नहीं कछु दाम ॥ ब०॥३॥
प्रभु सेवा जाकी पारससुं कहां काम ॥ ब०॥४॥
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