624 bytes added,
10:03, 21 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सूरदास
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBhajan}}
{{KKAnthologyKrushn}}
<poem>
निरधनको धनि राम । हमारो०॥ध्रु०॥
खान न खर्चत चोर न लूटत । साथे आवत काम ॥ह०॥१॥
दिन दिन होत सवाई दीढी । खरचत को नहीं दाम ॥ह०॥२॥
सूरदास प्रभु मुखमों आवत । और रसको नही काम हमारो०॥३॥
</poem>