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<poem>
धनि यह वृन्दावन की रैनु।
नंदकिसोर चरा चरावे गैयां बिहरि बजावे बैनु॥
मनमोहन कौ ध्यान धरै जो अति सुख पावत चैनु।
चलत कहां मन बसहिं सनातन जहां लैनु नहीं दैनु॥
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