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10:07, 25 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पुष्पिता
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|संग्रह=
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<poem>
प्रेम में
अपनी आँखों में
देखती है वह - प्रिय के नयन
और अनुभव करती है - सुख
- गिरा अनयन, नयन बिनु बानी -
अपने ही अधरों में
अनुभव करती है - प्रिय-प्रणय-स्वाद
अपने शब्दों की
व्यंजना में महसूस करती है -
प्रिय-प्रणय-अभिव्यंजना...
अपनी स्पर्शाकांक्षा में
सुनती है - प्रिय के शब्द
और चुप हो जाती है
संप्रेषण के लिए - प्रिय को
प्रिय की तरह
मौन ही
</poem>