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दस्तक / पुष्पिता

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दरवाज़े
बने होते हैं
दस्तकों के लिए।

दस्तक से
तड़प उठते हैं
किवाड़ के रोम-रोम।

दरवाज़े
सुनना जानते हैं दस्तक
पर चुप रहते हैं
गरीब के सपनों की तरह।

दरवाज़े
जानते हैं
दस्तकों की भाषा।

सुनवाई
न होने पर
दरवाज़े छोड़ देते हैं दीवारें
और दीवारों के घर।
</poem>
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