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शब्द-बैकुंठ / पुष्पिता

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<poem>
बादल
चुप होकर बरसते हैं
मन-भीतर
स्मृति की तरह।

सुगंध
मौन होकर चूमती है
प्राण-अंतस
साँसों की तरह।

उमंग
तितली-सा स्पर्श करती है
मन को
स्वप्न-स्मृति की तरह।

विदेश प्रवास की
कड़ी धूप में
साथ रहती है
प्रणय-परछाईं।

सितारे
अपने वक्ष में
छुपाए रखते हैं प्रणय-रहस्य
फिर भी
आत्मा जानती है
शब्दों के बैकुंठ में है
प्रेम का अमृत।
</poem>
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