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07:42, 26 मई 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पुष्पिता
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
औरत
चुप रही
दुनिया बोलती रही।
ऐसे ही
एक सदी बीत गई।
औरत
सुनती रही है
दुनिया के खोखले
और डरावने शब्द।
बच्चे
जिन्हें मुखौटा कहते हैं।
</poem>
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